Tuesday, August 31, 2010

लो सहेज तुम अज ये बचपन

बचपन कभी कहीं खोता नहीं है..

बस हम ही उसे भूल जाते कहीं हैं..!

वो मासूम से लड़कपन के खेल क्यों जाने..

दुनिया के कामों में दबे से जाते हैं..!!

आज तक जान पाया है कोई..

अब तक इसे भूझ पाया है कोई..!

ज़िम्मेदारी के बोझ तले दब जाता क्यों बचपन..

हँसना कैसे भला भूल जाता है कोई..!!

स्कूल में इंतजार छुट्टी की घंटी के बजने..

और गर्मियों की छुट्टियों का थे करते किया..!!

आज उसी स्कूल की दीवारों में दिखती है ज़िन्दगी..

लगता सिमट जीवन की गयी हैं खुशियाँ..!!

उसी स्कूल की छोटी से बेंच पर बैठे बैठे..

पता नहीं कब बचपन के दिन वो बीते..!

जब लड़ते थे दोस्तों से उन दिनों..

कुछ पल में हँस कर मिल जाते गले थे..!!

उम्र के साथ मासूमियत क्यों खोना..

माफ़ करना क्या मुश्किल बड़ा है..!

अगर दिल से कोशिश करेगा जो इंसान..

प्यार बाटना नामुमकिन नहीं है..!!

लो सहेज तुम आज ये बचपन..

की फिर ना मिलेगा जो ये गुजर गया तो..!

अँधेरी रातों में रोशन तुम रखना..

की जल सकेगा ये जो बुझ गया तो..!!

- किंशु शाह

३१ अगस्त २०१०

3 comments:

  1. vah vah meri chotu si jan itni badi ho gai ki itni pyari poem bhi likh dali. ha sach me pta nahi kyu hum apna bachpan bhul jate he usk sath hi kyu nahi jeete he, vo hame chodk kanhi nahi jata hum use peecha chod k age bad jate he
    i m proud of u laddo

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  2. Ji aapne to poora bachpan dowara yaad dila diya...... sach kahan aapne aajkal pata nahi hum wo sab kahan bhul gaye hain......

    Thanks for such a nice poem......

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  3. me shayar to nahi jabse tra blog pada tabse shayari aa gayi

    pj tha bhawanao ko samjho

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